क्या जरूरी है मेरा जाना?
चिधियाघर का माहोल इन दिनों गुमसुम है। वक्त आ गया है कुछ साथियों के बिछुड़ने का। यहां के सफेद शेर रिदि्ध को राजकोट चिधियाघर में भेजा जा रहा है, जिसके बदलें यहां नील नाम का बब्बर शेर आएगा। वहीं सफेद मोरों में से एक जोड़ा बिलासपुर जू तो दूसरा जोड़ा औरंगाबाद जू जाएगा। बिलासपुर से हमें भालू मिलेगा। चिçड़याघर में रह रहे इन मूक प्राणियों (रिदि्ध) की अबोली भाषा को हमारे रिपोर्टर ने जानने की कोशिश की।
दक्षा वैदकर. इन्दौर
मैंने ये कभी सपनें में भी नहीं सोचा था कि मुझे अपने घर को छोड़कर जाना पड़ेगा। जिस मां ने मुझे जन्म दिया, जिन बहनों के साथ मैं पली-बढ़ी, खेली... उनसे कुछ दिनों बाद मैं बिछड़ जाऊंगी। जब से ये पता चला कि मुझे दूसरे चिçड़याघर भेजा जा रहा है, आंसू है कि रूकने का नाम नहीं ले रहे। रह-रहकर पुराने दिन याद आ रहे है। दिल करता है कि दिन-रात अपने घर को और दोस्तों को निहारती रहूं। अपनी आंखे में ये पल कैद कर लूं ताकि बाकि जिन्दगी इन्हीं यादों के साथ गुजार सकूं। मुझे आज भी वो दिन याद है जब मेरा जन्म हुआ था। 7 मार्च 2009 का वह दिन था। मुझे और मेरी बहनों को देखने के लिए लोगो की भीड़ होती थी। सभी हमारी अठखेलियों को देख बड़े खुश होते थे। हम भी उनका मनोरंजन करने के लिए रोजाना कुछ न कुछ नया करने को आतुर रहते थे। अखबारों में हमारी तस्वीरें छपती थी। उसी बेइन्तहा प्यार का बड़ा खामियाजा हमारे परिवार को भुगतना पड़ा था। डॉक्टर की बातों को मैंने सुना था। वे बता रहे थे कि शहर के एक बड़े नेता के रिश्तेदारों ने नन्हीं समृदि्ध को गोद में उठाकर खिलाया था, जिसकी वजह से उसमें इंसानी गन्ध आ गई थी। मां ने उसे दूध पिलाना बन्द कर दिया और देखते ही देखते समृदि्ध हमें छोड़कर इस दुनिया से चली गई। हम इस सदमें से थोड़ा सम्भले ही थे कि पिताजी श्यामू का कैंसर से देहान्त हो गया। अब घर में मेरे अलावा मां सीता, बहनें सिद्धी, शिवानी व दीया है। सिद्धी तो मेरी उम्र की है, लेकिन शिवानी-दीया अभी सिर्फ छह महिने के है। कभी-कभी वे भी खेलते-खेलते अचानक सवाल कर बैठती है- रिद्धी दीदी, आप भी हमें छोड़कर जाने वाले हो?... क्या आपका जाना इतना जरूरी है? उनके इन मासूम सवालों को सुन आंखे भर आती है। मैं दौड़कर उन्हें सीने से लगा लेती हूं।
अब दिन-रात बस यहीं कोशिश करती हूं कि जितने भी समय यहां रहूं, खुशियां ही बाण्टू। सभी के साथ अच्छी यादें सहेज कर जाऊं। लेकिन पता नहीं क्यों कभी अकेले बैठती हूं तो क्यों खूब रोने का मन करता है। सीने में एक हंूक सी उठती है और गला भर आता है। अपने उदास चेहरे को छिपाने की कोशिश करती हूं लेकिन आसपास के अनुभवी बड़ों से ये छिपा नहीं पाती। डKूटी करने वाले सेवसिंह व रोजाना खाना देने वाले रमेश दादा मेरी हरकतों से भाप जाते है और बात कर के मुझे बेहलाने की कोशिश करते है। सारे जानवर भी मुझे ढांढस बन्धाने के लिए अपने उदाहरण देते है। कल ही मोती हाथी दादा कह रहे थे- तू रोती क्यों है रे पगली, तुझे तो खुश होना चाहिए, जो तुझे बाहर जाने का मौका मिल रहा है। माहोल में बदलाव मिल रहा है...। वरना हमें देख... सालों से यहीं पड़े है। एक ही जगह खड़े, झूम-झूमकर खुश हो रहे है। चम्पा हथिनी बोली, हमनें तो कई बार भागने की कोशिश भी की लेकिन सारी कोशिशें नाकाम... अब हमें दूसरे चिçड़याघर में कोई एक्सचेञ्ज भी क्यों करेगा, हाथी तो सभी चिçड़याघर में होते थे। लेकिन खुशनसीब है कि तू सफेद शेर है। लोग तुझे देखना चाहते है। सोच, वहां भी तुझे देखने के लिए भीड़ उमड़ा करेगी। तू स्टार बन जाएगी।
सोनू भालू काका हंसाने के लिए बोले- काश मुझे ये मौका मिलता तो मैं तो झट से हां कह देता। इस छोटू भालू से तो छुटकारा मिलता। रात को खर्राटे ले-लेकर मुझे परेशान करता है... सभी उनकी इस बात को सुन हंस पड़े और कुछ पल के लिए मैं भी खुश हो गई।
... लेकिन अब उन्हें कैसे समझाऊं कि मुझे ये सब नहीं चाहिए। मुझे तो सिर्फ अपने परिवार के साथ रहना है। मैं किसी भी चिçड़याघर में जाऊं, वहां मुझे तेदूआं अंकल मॉन्टी, शेरू और ममता नहीं मिलेंगे। न ही समझदारी वाली बातें सीखाने को होंगे लालू और श्यामू टाइगर अंकल। भालू दादा सोनू और छोटू की तरह मुझे कौन हंसायेगा? सिद्धी बहन की तरह मेरे दुखों को कौन बाण्टेगा। सबसे बड़ी बात मां सीता की तरह मुझे कौन लाढ़ करेगा? अभी मेरा गम कोई समझ नहीं सकता। सब कहते है कि मोर और स्याही भी जा रहे है। लेकिन उनके जाने में अन्तर है। वे जोड़े में जा रहे है। उनका दुख बाण्टने के लिए यहां से साथी जा रहा है। लेकिन मेरा क्या? मैं तो वहां बिलकुल अकेली रहूंगी। मेरे साथ सिद्धी को भी भेजो न, ताकि मैं अकेली न रहूं...। रूकों, रूकों... ये मैं क्या बोल बैठी। सिद्धी को मत भेजो...। मां के पास कोई तो रहें।
क्या ऐसा नहीं हो सकता कि हम दोनो ही न जाए? क्या कुछ पाने के लिए कुछ खोना जरूरी है? क्या नए मेहमान के आने के लिए मेरा जाना जरूरी है? वो नील नाम का बब्बर शेर, ऐसे ही नहीं आ सकता? लोग क्यों अपने चन्द मिनटों के मनोरञ्जन के लिए हमें परिवारों से अलग कर रहे है। मैं इंसानों से पूछना चाहती हूं कि आपके बच्चो दूसरे शहर जाकर बसतें है तो क्या आप खुश होते है?
Daksha its Wonderful story i m feeling very bad :- ye jo ho raha hia idhar udhar le jane ka zoo ke animals ko its really very bad :- Insano is galti ko sudhar lo .....
ReplyDeleteKeep it Up daksha......wonderful job har koi insano ke liye sochta hai :- tumne jo kia woh bahot kum log karte hai....
ReplyDeletethanku jay... itne pyare comment ke liye
ReplyDeleteबहुत अच्छा लिखा है।
ReplyDeletethanku sir, apne mujhe bargad dada ki kahani likhne ko kaha tha, ye usi ka fal hai ki mujhe aisi stories karne ka moka milta hai... credit goes to u...
ReplyDeleteExcellent Daksha Di....:)
ReplyDeleteHum Sabhi Ko Kuch Seekhna Chahiye Is Story Se....!!!
Good One....
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ReplyDeleteएक मानवीय स्टोरी......... बधाई हो दक्षा,
ReplyDeleteपढकर बहुत अच्छा लगा, अगर दिल थोडा कमजोर होता या मै एक पत्रकार न होता तो शायद अपन आंसुओं को रोक नहीं पाता...।
आज के दौर मे भी आपने इस विषय को चुना और खबर को इतने मानवीय स्वरूप मे पेश किया, साथ ही खबर फ्रंट मे छपी काबिले ए तारीफ ...
सोहन सिंह,भोपाल
बहुत अच्छी स्टोरी है ...
ReplyDeletenice one dak keep it up i hope u continue doing this type of story
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