Tuesday, March 29, 2011

चोरों की चान्दी न हो जाए
भारत और पाकिस्तान का मैच है। कई ऑफीसेस में छूट्टी घोषित कर दी गई है तो कई दुकानें ही नहीं खुलेंगी। सुनसान रास्तें, खाली मैदान और शान्त मॉल्स में अगर किसी की चान्दी होगी तो वो होंगे चोर। मुझे आज भी याद है बचपन के वो दिन जब रविवार को महाभारत सीरियल देखने के लिए लोग बेहद उत्सुक होते थे। तब भी सड़कें खाली हो जाया करती थी। इसी सीरियल की वजह से हमारे बिल्डिंग की दो साइकिलें चोरी हो गई, जिनमें से एक मेरी थी। आज भी जब सड़के खाली हुआ करती है, किसी मैच या सीरियल की वजह से... तो दिल कहता है... अब किसकी बारी आई। किसी साइकिल, किसकी बाइक व किसकी स्कूटी चोरी हुई। लोगो से गुजारिश है कि मैच देखें लेकिन आसपास की हरकतों पर भी ध्यान रखें। गाडियों को चैन लगाकर सुरक्षित जगह पर ही रखें... और मैच का सही तरीके से आनन्द लें।
... भास्कर के दाना-पानी अभियान (आओ बनें पक्षियों का सहारा) की शुरूआत के लिए मैंने यह कहानी लिखी थी।

भूखी-प्यासी चिन्नी भुली चहचहाना
घर के आसपास फुदकने और चहचहाने वाली चिन्नी चिड़िया इन दिनों परेशान है। उसकी साथी कोयल भी उदास है और गोरैया ने भी गाना छोड़ दिया है। कबूतर की गुटरगूं और तोते के टेटे सभी की एक पुकार है, जो कह रही है कि शहर में भी दाना-पानी नहीं मिल रहा है। उनका सारा दिन दाना-पानी की तलाश में बीत रहा है।
पड़ौस की चिन्नी चिड़िया सोमवार को सुबह 4 बजे ही उठ गई क्योंकि चार दिन के बच्चो को खाना खिलाना था। वैसे यह नई बात नहीं है। कई दिनों से चिन्नी चिड़िया दाना-पानी को लेकर बहुत परेशान है। तालाब सूख गए हैं और जंगल में खाने के लिए कुछ नहीं मिल रहा। आसपास के स्कूल भी गर्मी की छुटियो की वजह से बन्द हैं, इसलिए जो बच्चो रिसेस में टिफिन का खाना उसके लिए छोड़ जाते थे, वे भी अब नज़र नहीं आते। खाना मिल नहीं रहा है और गर्मी का प्रकोप bhee बढ़ता जा रहा है।
चिन्नी घण्टों आसमान में उड़ते हुए, घरों की छतों पर नज़र डालते हुए सोचती रही काश कहीं से थोड़ा सा खाना मिल जाए तो बछो को कुछ खिला दूं। भले ही मुझे न मिले लेकिन बच्चो भूखे न रहे। वह बार-बार यही बात दोहराती जा रही थी। उधर, बच्चो भूख सहन नहीं कर पा रहे और चिल्ला-चिल्लाकर गला सूखा रहे हैं। इधर, वह परेशान थी कि आज भी वे उसके इन्तजार में भूख से बिलख रहे होंगे।
अब चिन्नी करती भी तो क्या करती, कई दिनों से उसे ठीक से खाना नहीं मिलने की वजह से वह खुद बहुत कमजोर हो गई है। उससे तो ठीक से उड़ा भी नहीं जा रहा। थोड़ा उड़ती और फिर हांफने लग जाती। जब वह थक-हारकर अन्तिम चौराहे स्थित पेड़ पर बैठी तो कूकी तोते की नज़र उस पर पड़ी। उसने अपने पंखों से उसके सिर को सहलाते हुए पूछा- क्या हुआ बहन, इतनी हांफ क्यों रही हो? वह जवाब देती उसके पहले ही खांसने लगी... खो... खो...। कूकी ने इशारे से उसे पास रखे पानी से भरे कटोरे से, पानी पीने को कहा। चिन्नी ने पानी पिया और सुस्ताते हुए बोली- धन्यवाद भैया। मुझे खुशी है हम पक्षी तो कम से कम एक-दूसरे का दर्द समझ पा रहे हैं। इंसान तो जैसे हमें भुल ही गए। क्या उन्हें हम पक्षियों का जरा भी खयाल नहीं आता। क्या श्राद्ध पक्ष में छत में खाना रख देने से इनका फर्ज पूरा हो जाता है? क्यों वे पिञ्जरों में रहने वाले खूबसूरत पालतू पक्षियों को ही खाना खिलाना पसन्द करते है? हमारी सिर्फ यही गलती है न, कि हम इतने खूबसूरत नहीं कि लोग हमें पाल सकें...।
चिन्नी चिçड़यां अपनी ही धुन में बोलती रही। वह भूल गई कि गुस्से में उसकी आवाज थोड़ी तेज हो गई है और अन्य पक्षी भी सुनकर आसपास जमा हो गए है। ऐसा लग रहा था मानो वो भाषण दे रही हो और सारे उसे सुन रहे हो। जब उसने ये बात कहीं, ढेर सारे पक्षी एक साथ उत्साहित होकर चिल्लाने लगे। चिड़िया का ध्यान उनकी तरफ गया और वह सकपका गई। भीड़ में से बुजुर्ग कौआ सामने आया और बोला- बेटी, तुम बिलकुल सही बोलती हो। यदि इंसानों तक तुहारे द्वारा ये बात पहुंचाई जाए तो हम सभी पक्षियों का बहुत भला हो जाएगा। अन्य पक्षियों ने भी हामी भरी और बोले- हां, हां, हम सब आपके साथ है...। हम सब इस परेशानी से गुजर रहे है।
पक्षियों की यह पीड़ा भास्कर ने समझी है क्या आप भी उनका दर्द समझ कर उनके लिए कुछ करेंगे...


ये है इनका खाना
कबूतर- ज्वार, बाजरा, गेंहू, चने की दाल
तोते- करडी, सूरजमुखी, ज्वार, मक्का, भिण्डी और मिर्ची
गौरेया- चावल, कंगनी, रमेली
मोर- ज्वार, गेंहू, बाजरा